देहरादून के प्रसिद्ध आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. भूपेंद्र कुमार सिंह संजय को चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए पद्मश्री प्रदान किया गया है

देहरादून के प्रसिद्ध आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. भूपेंद्र कुमार सिंह संजय को चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए पद्मश्री प्रदान किया गया है। डा. भूपेंद्र कुमार सिंह संजय को कई देशों से फेलोशिप भी मिली है। सर्जरी के क्षेत्र में उपलब्धियों के लिए उनका नाम लिम्का बुक और गिनीज बुक में भी शामिल किया गया है। वे पिछले कई वर्षों से राजपुर रोड स्थित जाखन में संजय ऑर्थोपेडिक एंड स्पाइन सेंटर का संचालन कर रहे हैं। 31 अगस्त 1956 को जन्मे डा. संजय ने वर्ष 1980 में जीएसबीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर से एमबीबीएस किया। इसके बाद काफी समय तक उन्होंने पीजीआई चंडीगढ़ और सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली में सेवा दी। इस बीच उन्होंने जापान, अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन समेत कई देशों से फेलोशिप हासिल की और आगे बढ़ते रहे।दुनिया के कई प्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल्स में उनके शोध लेख प्रकाशित हुए। उन्होंने दुनिया के कई देशों में गेस्ट फैकल्टी के तौर पर भी व्याख्यान दिए। डा. संजय ने चिकित्सा जगत के साथ ही समाज सेवा के क्षेत्र में भी अपनी विशिष्ठ पहचान बनाई है। पोलियो, मस्तिष्क पक्षाघात, बच्चों में लकवा और विकलांगता के खिलाफ वह लगातार काम कर रहे हैं।
अपने 40 वर्ष के लंबे मेडिकल करियर में अपनी टीम के साथ उन्होंने पांच हजार से अधिक बच्चों को जीने की नई उम्मीद दी है। इसके अलावा सड़क दुर्घटना से होने वाली शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व सामाजिक क्षति को लेकर भी वो लंबे समय से जागरूकता अभियान चला रहे हैं।
कोरोना काल में भी जरूरतमंदों को बेहतर उपचार दिलाने के लिए उन्होंने काफी प्रयास किए।
डा. संजय का नाम चिकित्सा जगत में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। वह इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन की उत्तराखंड शाखा के संस्थापक अध्यक्ष रहे हैं।
इसके अलावा वे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी जुड़े हैं। वे उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में सलाहकार और एचएनबी बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय की एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य भी रह चुके हैं।
अभी वे एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के सदस्य हैं। डा. संजय के नाम पर कई उपलब्धियां और पुरस्कार हैं। 2005 में हड्डी का सबसे बड़ा ट्यूमर निकालने का विश्व रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हुआ।
इसके अलावा 2002, 2003, 2004 व 2009 में सर्जरी में कई अभिनव उपलब्धियों के लिए उन्हें लिम्का बुक में स्थान मिला। जिनमें 98 वर्षीय हाई रिस्क मरीज की सफल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी, 88 वर्षीय

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