रणजीत सिंह वर्मा ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन में निभाई थी अहम भूमिका

उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष रहे रणजीत सिंह वर्मा के प्रखर नेतृत्व का जिक्र करते हुए राज्य आंदोलनकारी  बताते हैं कि वर्मा ने पृथक राज्य के सपने को साकार करने के लिए जी जान लगा दी थी।  नेतृत्व में ताबड़तोड़ बंद, चक्का जाम, तालाबंदी, जुलूस-प्रदर्शन, ब्लैकआउट, रेल रोको जैसे आंदोलन चलाए गए। दो अक्टूबर 1994 में रामपुर तिराहा कांड में वह घायल हो गए थे और उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया था। उन्होंने अपना मत भी स्पष्ट कर दिया था कि जब तक पृथक राज्य की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक ही सक्रिय राजनीति में रहेंगे और इसके बाद इन सबसे दूर चले जाएंगे।  नौ नवंबर 2000 को जब पृथक राज्य का सपना पूरा हुआ  जब सर्वमान्य नेता को वर्ष 2002 में पहले विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया गया। सभी दल उन्हें अपने पक्ष में खड़ा करने को लेकर प्रयासरत थे। तब उन्होंने इतना ही कहा कि मेरा संकल्प राज्य निर्माण आंदोलन को उसकी मंजिल तक पहुंचाना था, न कि चुनाव लड़ना। राज्य बन गया है और इसी के साथ यह संकल्प भी पूरा हो गया। अब विधानसभा या लोकसभा चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं रही। उन्होंने कहा था कि दो बार का विधायक रह चुका हूं इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर मैंने संकल्प ले लिया था कि राज्य बनने के बाद सक्रिय राजनीति से दूर चला जाऊंगा।

उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर दो अक्टूबर 1994 को आंदोलनकारी दिल्ली जा रहे थे। जहां रामपुर (मुजफ्फरनगर) तिराहे के पास आंदोलनकारियों को पुलिस ने रोक दिया। इस पर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे पूर्व विधायक रणजीत सिंह वर्मा अपनी कार से उतरे और बेरिकेडिंग के पास पहुंच गए।

इस दौरान उनके साथ आंदोलनकारी स्व. वेद उनियाल, आंदोलनकारी शंकरचंद रमोला, ओमी उनियाल, रविंद्र जुगरान भी शामिल थे। पुलिस से धक्का-मुक्की शुरू हुई तो पूर्व विधायक पर पुलिस ने बंदूक तान दी। आंदोलनकारी ओम उनियाल के अनुसार पुलिस के बल प्रयोग करने के बाद भी वह भिड़ते रहे। पुलिस ने लाठीचार्ज कर उनको घायल कर दिया। इसके बाद गंभीर घायल अवस्था में पूर्व विधायक वर्मा, शंकरचंद और स्व.वेद उनियाल को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

राज्य आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर कांड में पूर्व विधायक रणजीत सिंह वर्मा भी गंभीर रूप से घायल हुए थे।

बाद में उनको घायल साथियों के साथ स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां वह अलग राज्य की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर अड़ गए थे। इससे तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के भी हाथ पांव फूल गए थे।

रणजीत सिंह वर्मा राज्य आंदोलन में तो अग्रणी रहे ही, उन्होंने किसानों के हितों की सुरक्षा को भी हमेशा आवाज बुलंद की। 25 वर्षों तक गन्ना परिषद के चेयरमैन पद पर रहते हुए उन्होंने किसानों की हर समस्या पर सड़क से सदन तक आवाज उठाई। यही कारण रहा कि सरकारों को किसानों के हित में कई फैसले लेने पड़े।

मूल रूप से डोईवाला विकासखंड के अपर जौलीग्रांट निवासी रणजीत सिंह वर्मा के पिता स्वर्गीय गुलाब सिंह स्वतंत्रता सेनानी रहे।

 

 

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