श‍िक्षा नीति में नये बदलाव – नाम बदलकर किया गया शिक्षा मंत्रालय

देश की श‍िक्षा नीति में 34 साल बाद नये बदलाव किए गए हैं. बुधवार को इस नई श‍िक्षानीति को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी. नई श‍िक्षा नीति में स्कूल के बस्ते, प्री प्राइमरी क्लासेस से लेकर बोर्ड परीक्षाओं, रिपोर्ट कार्ड, यूजी एडमिशन के तरीके, एमफिल तक बहुत कुछ बदला है. .इस नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा के साथ कृषि शिक्षा, कानूनी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसी व्यावसायिक शिक्षाओं को इसके दायरे में लाया गया है. इसका मुख्य उद्देश्य है कि छात्रों को पढ़ाई के साथ साथ किसी लाइफ स्‍क‍िल से सीधा जोड़ना.अभी तक शादी होने या किसी के बीमार होने पर किसी की पढ़ाई बीच में छूट जाती थी. अब ये व्यवस्था है कि अगर किसी कारण से पढ़ाई बीच सेमेस्टर में छूट जाती है तो इसे मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम के तहत आपको लाभ मिलेगा. मतलब अगर आपने एक साल पढ़ाई की है तो सर्टिफिकेट, दो साल की है तो डिप्लोमा मिलेगा. तीन या चार साल के बाद डिग्री दी जाएगी अभी तक शादी होने या किसी के बीमार होने पर किसी की पढ़ाई बीच में छूट जाती थी. अब ये व्यवस्था है कि अगर किसी कारण से पढ़ाई बीच सेमेस्टर में छूट जाती है तो इसे मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम के तहत आपको लाभ मिलेगा. मतलब अगर आपने एक साल पढ़ाई की है तो सर्टिफिकेट, दो साल की है तो डिप्लोमा मिलेगा. तीन या चार साल के बाद डिग्री दी जाएगी सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक हर बच्चे के लिए शिक्षा सुनिश्चित की जाए. इसके लिए एनरोलमेंट को 100 फीसदी तक लाने का लक्ष्य है. इसके अलावा स्कूली शिक्षा के निकलने के बाद हर बच्चे के पास लाइफ स्किल भी होगी. जिससे वो जिस क्षेत्र में काम शुरू करना चाहे, तो वो आसानी से कर सकता है मल्टीपल डिसिप्लनरी एजुकेशन में अब आप किसी एक स्ट्रीम के अलावा दूसरा सब्जेक्ट भी ले सकते हैं. यानी अगर आप इंजीनियरिंग कर रहे हैं और आपको म्यूजिक का भी शौक है तो आप उस विषय को भी साथ में पढ़ सकते हैं. अब स्ट्रीम के अनुसार सब्जेक्ट लेने पर जोर नहीं होगा. पहले जैसे स्ट्रीम के अनुसार सब्जेक्ट का चुनाव करना होता था प्राथमिक स्तर पर शिक्षा में बहुभाषिकता को प्राथमिकता के साथ शामिल करने और ऐसे भाषा शिक्षकों की उपलब्धता को महत्व दिया दिया गया है जो बच्चों के घर की भाषा समझते हों. यह समस्या राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्यों में दिखाई देती है. इसलिए पहली से पांचवीं तक जहां तक संभव हो मातृभाषा का इस्तेमाल शिक्षण के माध्यम के रूप में किया जाए. जहां घर और स्कूल की भाषा अलग-अलग है, वहां दो भाषाओं के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है।

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