उत्तराखंड से गुजरात भेजे जाएंगे आदमखोर गुलदार

देहरादून, देश के कई राज्यों में गुलदारों का आतंक इंसानों के लिए खतरा बन गया है। उत्तराखंड भी इन्हीं राज्यों में शुमार है। कम क्षेत्रफल में गुलदारों की बढ़ी संख्या ने इनके खतरे को लोगों के लिए और भी बढ़ा दिया है। इसी का नतीजा है कि पिछले 2 दशक में 400 से ज्यादा लोग गुलदार का निवाला बन चुके हैं। उधर, अब वन महकमा गुलदारों पर अध्ययन करने से लेकर उन्हें दूसरे राज्यों में शिफ्ट करने की जुगत में लग गया है।
गुलदार एक ऐसा वन्य जीव है, जो हर मौसम और परिवेश में खुद को ढाल लेता है। पिछले कुछ समय में गुलदारों के प्राकृतिक स्वभाव में कुछ बदलाव देखने को मिला है। गुलदार का रुझान आबादी वाले इलाकों के पास ज्यादा दिखाई देता है। हालांकि, इसके अपने कई कारण हैं। गुलदारों को मिली ये नई परिस्थितियां इंसानों और गुलदारों के बीच संघर्ष को बढ़ा रही हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस संघर्ष में सैकड़ों लोगों के साथ ही गुलदार भी अपनी जान गंवा रहे हैं। उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में गुलदारों की मौजूदगी दिखाई देती है। खास तौर पर बस्तियों के पास इनका आसान शिकार के लिए पहुंचना, अब खतरे को तेजी से बढा रहा है। ऐसा नहीं कि प्रदेश में इस संघर्ष के दौरान गुलदारों को नुकसान न पहुंचा हो। पिछले दो दशक में 1,449 गुलदारों की भी विभिन्न कारणों से मौत हुई है। प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी बताते हैं कि जंगलों में पर्याप्त भोजन नहीं मिलने कारण अब गुलदार बस्तियों की तरफ बढ़ रहे हैं। साथ ही इंसानों का जंगलों के करीब जाना और इंसानी बस्तियों में आसान शिकार भी, उन्हें यहां आकर्षित कर रहा है।
प्रदेश में समय-समय पर मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए कई उपाय और अभियान चलाए गए हैं। इसी के तहत राज्य से 7 गुलदार गुजरात भेजने की भी तैयारी की जा रही है। दरअसल, समस्या यह है कि प्रदेश में सेंट्रल जू अथॉरिटी से अधिकृत दो रेस्क्यू सेंटर मौजूद हैं। इनमें पहला हरिद्वार में चिड़ियापुर में स्थित है। दूसरा नैनीताल में रानीबाग में है। चिड़ियापुर में 8 गुलदार रखे गए हैं और रानीबाग में 3 गुलदार मौजूद हैं। खास बात यह है कि इन दोनों ही रेस्क्यू सेंटर में गुलदार को रखने की इतनी ही क्षमता है। ऐसे में चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस सुहाग ने प्रस्ताव भेजकर सेंट्रल जू अथॉरिटी से 7 गुलदार गुजरात के जामनगर स्थित रेस्क्यू सेंटर में भेजने की मंजूरी ली है। हालांकि अभी शासन स्तर पर इसकी फाइल पेंडिंग है। सरकार से इसकी मंजूरी ली जानी बाकी है।

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