देहरादून, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी मद्रास) के शोधकर्ताओं ने यह दर्शाया है कि स्पाइक प्रोटीन वैक्सीन कोरोनावायरस (सार्स कोव–2 के कई वेरिएंट पर अभी भी असरदार हो सकता है। आईआईटी मद्रास के शोध से यह सामने आया है कि वैक्सीन से उत्पन्न टी-सेल की प्रतिक्रियाएं हमें चुने हुए वेरिएंट्स डेल्टा प्लस गामा जेटा मिंक और ओमाइक्रोन के संक्रमण से बचा सकती हैं। यह न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं के बेअसर होने के बावजूद मुमकिन है। इसकी पुष्टि के लिए अतिरिक्त प्रायोगिक शोध को आवश्यक बताते हुए शोधकर्ताओं का मानना है कि मौजूदा स्पाइक प्रोटीन वैक्सीनेशन के कोरोनावायरस (सार्स- कोव–2 के सर्कुलेटरी वेरिएंट पर असरदार होने की संभावना है।
शोधकर्ता यह पता लगा रहे हैं कि यदि वैक्सीन लगाने के बावजूद इसे तैयार करने में शामिल मूल रूप से वुहान स्ट्रेन के अलावा किसी अन्य वेरिएंट का संक्रमण हो तो इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। सार्स कोव–2 के वेरिएंट में वायरस के स्पाइक प्रोटीन में मोलेक्यूलर लेवेल पर परिवर्तन होते हैं और ऐसे परिवर्तन में प्रोटीन सीक्वेंसी के क्षेत्र शामिल हो सकते हैं जिन्हें एपिटोप्स नामक टी-सेल्स पहचान लेते हैं।
प्रतिरक्षा (इम्यून) की प्रतिक्रियाओं पर ऐसे परिवर्तन का प्रभाव समझने से सार्स कोव–2 के वेरिएंट पर वैक्सीनेशन के प्रभाव के बार मंे कुछ स्पष्ट जानकारी मिल सकती है। यह शोध डॉ. वाणी जानकीरमन सहायक प्रोफेसर जैव प्रौद्योगिकी विभाग भूपत और ज्योति मेहता स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज आईआईटी मद्रास के मार्गदर्शन में किया गया। इस कम्प्यूटेशनल शोध के परिणाम हाल ही में प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जर्नल बीबीए – मॉलिक्यूलर बेसिस ऑफ डिजीज में प्रकाशित किए गए। यह शोध पत्र जैव प्रौद्योगिकी विभाग आईआईटी मद्रास के विद्यार्थी एस शंकरनारायणन और मुग्धा मोहखेडकर और डॉ वाणी जानकीरमन ने मिल कर तैयार किया है।